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पटना :एकजुटता सभा
संघर्षरत किसानों के समर्थन में सड़कों पर उतरे पटनावासी।
'सिटीजन्स फोरम' ने संघर्षरत किसानों के पक्ष में बुलाई एकजुटता सभा
पटना 21 जनवरी। " पिछले वर्ष जब कोविड-19 महामारी का भय दिखाकर पूरे देश को घरों में कैद कर दिया गया था और संसद के सत्रों को निलंबित कर दिया गया था उसी समय राज्यों के अधिकार क्षेत्र में असंवैधानिक हस्तक्षेप करते हुए तीन कृषि कानून लाये गए, जिसे भारत के इतिहास में तीन काले कृषि कानून के नाम से जाना जाएगा। दशकों की करुण चुपी और आत्महत्याओं के लंबे दौर के बाद सदा शांत रहने वाले किसान आज तिलमिला उठे। पंजाब और हरियाणा के खेतों से उठी किसानों के विद्रोह की आँच आज मुल्क के तमाम हिस्सों में फैल चुकी है। यह विद्रोह देश को भूख और कुपोषण के नरक में धकेले जाने के विरुद्ध है। किसानों की यह लड़ाई लोकतंत्र को जनता का और जनता के लिए बनाने की लड़ाई है। " ये बातें 'सिटीजन फोरम', पटना द्वारा किसानों के समर्थन में आयोजित एकजुटता सभा में कही गई।
नागरिक सरोकारों और जनतांत्रिक अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था 'सिटीजन फोरम' , पटना द्वारा किसानों के समर्थन में एकजुटता सभा का आयोजन बुद्ध स्मृति पार्क, फ्रेजर रोड पर किया गया। लगभग 4 घण्टे तक चली सभा में शहर के कई राजनीतिक- सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, संस्कृतिकर्मी, रँगकर्मी, साहित्यकार शामिल हुए।
राजनीतिक कार्यकर्ता मणिकांत पाठक ने कहा " यह कानून खेती-किसानी को पूरी तरह से बर्बाद कर देगा और किसानों को मजदूर बना देगा। यह जमीन छीनने वाला वाला कानून है"। बुद्विजीवी "अरविंद सिन्हा ने कहा कि किसानों कीयह लड़ाई अभूतपूर्व है। जिस एकजुटता से देश भर के लोग किसानों के साथ खड़े हैं यह उन्हें जरूर जीत दिलाएगा। सरकार कृषि क्षेत्र को पूंजीपतियों को देना चाहती है। मजदूर किसान के जीने मरने से इस सरकार को कोई मतलब नहीं। जमाखोरी, कालाबाजारी के लिए कानून लाया गया है। छात्र- नौजवान में बेराजगारी बढ़ती जा रही है लेकिन सरकार को कुछ भी करने तैयार नहीं है।"
फिलहाल' पत्रिका की संपादक प्रीति सिन्हा ने एकजुटता सभा को संबोधित करते हुए कहा" सरकार जबरदस्ती इस कानून को थोपना चाहती है। यह कृषि कानून सिर्फ किसानों ही नहीं बल्कि आम नागरिकों के हितों के भी खिलाफ है।"
लोकल बॉडी के कर्मचारियों के लिए काम करने वाले जितेंद्र कुमार ने बताया " यह कानून असंवैधानिक है। दिल्ली बार्डर पर बैठे किसान भगत सिंह के वंशज है। वो हारने वाले नहीं हैं।"
फोरम के वरिष्ठ साथी नंदकिशोर ने अपने संबोधन में में इस कानून को जनविरोधी बताते हुए कहा " लगभग दो महीने से ठंड बैठे किसान सरकार के नापाक इरादों को सफल नहीं होने देंगे। आज पूरा देश इस काले कानून के खिलाफ किसानों के साथ है। "
इंजीनियर सुनील सिंह के अनुसार " किसानों को एन. आई.ए द्वारा फंसाया जा रहा है। विदेशी फंडिंग का नाम लेकर खालिस्तानी होने का झूठा आरोप लगाया जा रहा है।"
छात्र नेता आकांक्षा प्रिया ने कहा "आज जरूरत है कि इस देश का आम नागरिक एकजुट होकर किसानों का समर्थन करे। किसानों की यह लड़ाई सिर्फ खेती -किसानी बचाने तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि एक बेहतर समाज के निर्माण का भी रास्ता खोलेगा। जिस पूंजीवाद की गिरफ्त में देश डाल दिया गया है वहाँ किसानों-मजदूरों और नागरिकों का हित सुरक्षित नहीं रह सकता। इसलिए जरूरी है कि छात्र-नौजवान खुलकर इस लड़ाई में हिस्सा लें।"
सिंधु बॉर्डर से लौटकर आये सुमन ने वहां के अनुभवों को साझा करते हुए बताया " किसानों की काफी लंबी कतारें हैं और उनका जज्बा और जोश देखने लायक है। भारत को समझने के लिए हम सबों को सिंधु बॉर्डर ओर जाना चाहिए"
कवि व संस्कृतिकर्मी आदित्य कमल और पर्यावरणविद मेहता नागेंद्र सिंह ने इस अवसर पर कविताओं का पाठ किया।
एकजुटता सभा का संचालन अनीश अंकुर और मोना झा ने संयुक्त रूप से किया।
सभा में काफी संख्या में नगरवासी मौजूद थे। सभा को फिल्मकार राकेश राज , शोषित समाज दल के अखिलेश , सीपीआई के पटना जिला सचिव रामलला सिंह, सी.आई.टी.यू के गणेश शंकर सिंह, नगर निगम कर्मचारियों के नेता मंगल पासवान, कर्मचारी नेता विश्वनाथ सिंह, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र कुमार, जन प्रतिरोध संघर्ष मंच के संजय श्याम, शिक्षाविद कुमार सर्वेश, महिला सांस्कृतिक संघ की साधना मिश्रा, पुकार, मंटू, आदि ने भी संबोधित किया और किसानों के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर की।
सभा में शहर के कई गणमान्य लोग मौजूद रहे जिनमें रूपेश, सीपीएम के पटना जिला सचिव मनोज कुमार चन्द्रवँशी, अजय कुमार सिन्हा, जयप्रकाश ललन, गजेंद्रकांत शर्मा, बिट्टू भारद्वाज, कंचन, अमरनाथ , इंद्रजीत , कुशवाहा नंदन, भगवान सिंह, कमल किशोर, अमरेंद्र कुमार मौजूद रहें।
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